सत्यम कुशवाह की कलम से.....
दुष्कर्म एक खतरनाक सामाजिक बुराई है, जो किसी प्रदर्शन और किसी के द्वारा किसी पर आरोप मड़ने से खत्म नहीं होगी, इसे खत्म करना है तो हमें यानी देश और दुनिया के तमाम इंसानों को अपनी सोच बदलनी होगी। इसकी शुरुआत हर घर से होगी। जब युग बदलेगा तब हम बदलेंगे ऐसा सोचने से कुछ नहीं होने वाला है, इसकी जगह जब हम बदलेंगे तब युग बदलेगा की सोच लानी होगी। अच्छी सोच के लिए किसी भी व्यक्ति में अच्छे संस्कार का होना, उसका अच्छा खान-पीन होना, खाली दिमाग न होना होना जैसी चीजें आवश्यक हैं। हमारे धर्म शास्त्रों में एक श्लोक है " यस्य पूज्यंते नार्यस्तु, तत्र रमंते देवता !!” यानी जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं।
दुष्कर्म(बलात्कार) जैसी खतरनाक सामाजिक बुराई को खत्म करना है तो हर एक घर से इसको खत्म करने का अभियान चलाना होगा। माता-पिता को अपने बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाने चाहिए। लोगों में महिला सम्मान की भावना जागनी चाहिए। अब हाय, हैलो के जमाने में ये सब खत्म हो रहा है और हाय हाय हो रही है। चरण स्पर्श जैसे संस्कार आधुनिकता की भेट चढ़ रहे हैं, इन घटनाओं के पीछे ऐसे तमाम कारण हैं। आज कल लोग आधुनिकता में ऐसे पागल होते जा रहे हैं कि अपने संस्कारों और संस्कृति को भूलते ही जा रहे है, विदेशी हमारी संस्कृति को अपनाने में लगे हैं तो वहीं हम भारतीय विदेशी संस्कृति यानी नंगेपन को अपनाने में लगे हैं। इसी के चलते दिमाग में गंदगी भरती जा रही है। जिसके परिणाम स्वरूप ही छेड़खानी, बलात्कार जैसी खतरनाक सामाजिक बुराई बढ़ती जा रही है।
दु:ख की बात ये है कि इन मामलों में पकड़े गए हैवानों को सजा के ऐलान के बाद भी मौत नहीं मिलती है। इसका एक उदाहरण है निर्भया कांड, इस केस में सभी आरोपियों को फांसी की सजा का ऐलान हो चुका है फिर भी जेल में रोटियां तुड़ाईं जा रही हैं। त्वरित एक्शन लेने के बजाए सजा देने में देरी होने से ही इन हैवानों के हौसले बुलंद होते हैं। इनके लिए तो फांसी भी कम है इन हैवानों को रूह कंपा देने वाली सजा देनी चाहिए, जिसके बाद इसे देखकर उन हैवानों के भी इरादे बदल जाएं जो इस गुनाह को आगे अंजाम देने की फिराक में हों।
देश में रोज ही अनेकों दुष्कर्म की वारदातें होती हैं, लेकिन कुछ ही सामने आती हैं और उनमें भी एक-आध ही टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में चर्चा का विषय बनती है। वहीं ऐसे विषयों पर भी देश में सियासत होती है, पक्ष-विपक्ष के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते और उनको कोसते नजर आते हैं। सियासत के लिए कुछ भी करेंगे नेता जी पर इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कुछ खास कुछ नया, कुछ कठोर नहीं करेंगे। कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं होने भी चाहिए, जब लापरवाही हो, लेकिन हर जगह पुलिस का होना संभव नहीं है। इसके लिए पुलिस से ज्यादा हम सब जिम्मेदार हैं, क्योंकि हम दूसरी बहन, बेटियों और माताओं को अपना नहीं मानते। लड़के जहां देखो दूसरी लड़कियों पर कमेंट करते नजर आते हैं या यूं कहें कि बुरी नजर डालते नजर आते हैं, वहीं जब उनकी खुद की बहन को कोई छेड़ दे तो मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। इस तरह और भी बहुत सी बातें हैं पर यहीं पर विराम लेता हूं।.......धन्यवाद !
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