आज प्रिया और पंकज के प्रेम को देखकर मुझे मेरे बीते हुए जीवन की यादें फिर से ताजा हो गई। वैसे आजकल के आधुनिक सभ्यता को देखते हुए मन थोड़ा सा घबरा जाता है । जब कि बचपन से लेकर ही बच्चों को अपना पसंद, नापसंद करना और खुद के हिसाब जीवन जीना जैसी अमूल्य छूट प्राप्त है और घरवाले भी अब बच्चों को सहयोग करने लगे हैं। वैसे आजकल लड़कियां भी हर क्षेत्र में नाम कमा रही है, चाहे वो खेल से लेकर, सैन्य सेवा हो हर क्षेत्र में अपना सहयोग कर रही है। बचपन से लेकर मै और मेरी दो सहेलियां, कमला और सीमा, हम तीनों ही सबसे अच्छी तालमेल के साथ रहते थे। और हम तीनों की दोस्ती पूरे गांव में प्रसिद्ध थी। हम सहेलियां जिधर भी जाते साथ में ही रहते थे।
मै मेरे परिवार में दादा- दादी, मां- पिता जी,चाचा - चाची और मेरा भाई सूरज, पूरा भरा परिवार था। बचपन का बच्चों की तरह गुजर जाना, हमको तो यह लगता है कि जैसे हम कभी बच्चे थे ही नहीं। फिर भी जितना हो सकता था एक लड़की होकर मै मेरे सहेलियों के साथ पूरा बचपन बड़े मौज- मस्ती से बिताया । उन्हीं के साथ पनघट से पानी भरना, उन्हीं के साथ राजा- रानियों के किस्से सुनना और फिर थोड़ी बहुत सी उछल कूद करना। वैसे घर में दादा जी के होते तो यह सब कुछ इतना आसान नहीं होता था पर किसी बहाने से बाहर निकलना और जीवन को जीना वो भी अदब के साथ, सबकुछ अच्छे से बीत जाता था। जीवन के उतार चढ़ाव भरी जिंदगी में वह सबकुछ देखने को मिला, महसूस किया जो इस मानव जीवन में जीना चाहिए। अचानक ही मेरे जीवन में एक अजनबी का आना और फिर मेरे जीवन का बदल जाना। बगल के गांव के ही लड़के,' सुरेश' से मुझको प्रेम हो गया। जिसका ख़बर मेरी सहेलियों को छोड़कर किसी को भी नहीं पता था।
मेरी और सुरेश की मुलाकात मेरी सहेली कमला की शादी में हुआ। सुरेश कमला के भाई का मित्र था। उसका चांद सा खूबसूरत चेहरा और लहराती जुल्फों में पता नहीं कैसा जादू था कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब मुझे सुरेश से प्यार करने लगी। अब हम दोनों की धीरे धीरे मुलाकात बढ़ने लगी जिसका खबर मै और मेरी सहेली सीमा को ही था । हम दोनों का मेरे बाग में मिलना, और घर वालों के चोरी छुपे खेत में मिलना। अब तो धीरे धीरे मेरे जीवन में बदलाव से मेरी मां को शक होने लगा और उसने मेरे उपर नज़र रखना शुरू कर दिया और एक दिन आखिर मै और सुरेश दोनो को मां ने बाग में बाते करते हुए देख लिया ।
घर पहुचते ही मां ने मुझसे पूछा कि, वो लड़का कौन था, तू किससे बात कर रही थी । मैं थोड़ा सयानी बनते हुए मां को झूंठ बोलना चाहा पर मां ने बोला कि मुझे सब सच सच बता। फिर मेरी चालाकी काम ना आयी और मुझे मेरे और सुरेश के बारे में बताना पड़ा।। अब सवाल था कि हम दोनों की शादी हो कैसे कौन पिता जी और बाबू जी से बात करे। खैर अब मिलने जुलने में थोड़ा सा ऐतिहात बरतना पड़ा। और अब हम लोग एक दूसरे को पत्र लिखकर बातें करने लगे।
मेरा काम आसान था क्यूंकि मेरे पास सीमा थी और वह सब संभाल लेती थी। बहुत मदद वाली जीवन होती है यदि सहेलियां हो तो। आखिर मां ने किसी तरह पिता जी को बताया और मेरी शादी की बात करने को बोली। बहुत मुश्किल भरा क्षण था जब मां ने मेरी शादी के लिए पिता जी से बात की।। फिर तो जैसे मेरे उपर से कष्ट के बादल छंट गए हों। आखिर मेरी और सुरेश की शादी हो गई।। और हम दोनों ने जीवन को भरपूर जिया जिन्दगी के हर क्षण में मै सुरेश के साथ खड़ी रही। प्रिया मेरी बेटी है और मेरी एक ही संतान है।
आज जब प्रिया को प्यार करते हुए देखा तो मुझे मेरी मां कि दी हुई शीख याद आ गई, 'मां ने कहा था कि प्रेम करना आसान नहीं होता, प्रेम में अपना सर्वस्व न्योछावर करना पड़ता है'।
मै भी मेरी बेटी प्रिया को इसी सीख के साथ जीवन जीने का और प्रेम करने का अपना अनुभव बताया और साथ ही यह भी कहा कि जीवन के हर क्षण में अपने पति अथवा प्रेम के साथ जीवन व्यतीत करें।
"अपने दिनों को याद कर के जैसे मैंने फिर से वो दिन जी ली हो।"
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